रविवार, 3 मार्च 2013

बलिया में तहलका मच गया



फेसबुक पर सक्रियता से अपनी विचाराभिव्यक्ति करते श्री प्रकाश गोविन्द जी के द्वारा दिया गया एक संस्मरण उनकी अनुमति लेकर आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं. उनकी फेसबुक वाल पर जैसा पढने को मिला, अक्षरशः वैसा ही आपके बीच...
आभार प्रकाश जी.

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कमल दादा का एक रोचक संस्मरण पढ़कर मजा आ गया !
आप मित्रों से साझा कर रहा हूँ !
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घटना अनोखी लगेगी पर है शत प्रतिशत सत्य -

बात 1948 की है। तब बीमा सरकारी क्षेत्र में नहीं था और अनेक बीमा कंपनी सक्रिय थीं। मैं ऐसी एक कंपनी "फ्री इंडिया जनरल इंश्योरेंस कंपनी" की बनारस शाखा में 'ब्रांच-एकाउंटेंट' था। मनेजर एक "पाण्डे" जी थे। बड़ी रंगीन तबियत के थे। परिवार दूर किसी गाँव में रहता और खुद बनारस की तवायफों के मुजरे में मस्त रहते। कंपनी-मुख्यालय से आदेश हुआ कि बलिया में हमारी कंपनी का काम संतोषजनक नहीं विशेष ध्यान दीजिये। अब उन्होंने जो ध्यान दिया वह सुनिए -

वे एक दिन बलिया के एक कीमती होटल मे जा कर ठहर गए। पता किया कि बलिया की सबसे प्रसिद्द तवायफ कौन सी है। रात उसके मुजरे में जा बैठे। महफिल उठते उठते उन्होंने सौ का एक नोट तवायफ के हाथों में दिया और बिना कुछ कहें लौट आये। यही सिलसिला चार पांच दिन चला। तवायफ भी उनकी इस हरकत पर विस्मित थी कि पता नहीं कौन हैं और बिना कोई फरमाइश के रोज बड़ी रकम देते और चले जाते हैं। सो एक दिन उसने हाथ पकड़ लिया और बोली कि बताना होगा आप कौन हैं और इस बाँदी से कोई फरमाइश क्यों नहीं करते ।

पाण्डे जी बोले अगर ऐसा है तो आप मेरी एक फरमाइश कबूल कर लें। उसने कहा - हुज़ूर आप हुकुम कीजिए बजा लाऊंगी। पाण्डेय जी बोले - एक दिन आप अपने सभी मुरीदों को बढ़िया डिनर का आयोजन कीजिये, जिसका सारा खर्च मैं उठाऊंगा। वह दंग रह गई कि यह कैसी फरमायश है पर पाण्डेय ने उसे आश्वस्त किया कि बाकी बात उसी दिन करूंगा ।

बहरहाल वह दिन भी आया और शराब तथा डिनर के बाद महफिल शुरू हुई। उस दिन तवायफ हमारी कंपनी के बीमा-प्रपोजल के फ़ार्म ले कर नाची और उपस्थित लोगों को मुजरे के साथ साथ एक-एक फ़ार्म भी सरकाती गई। कहते हैं तवायफ का कोठा ऐसी जगह है जहां सभी शहंशाह बनते हैं। महफ़िल भी धन्नासेठों और जमींदारों की थी (उस समय जमीदारी समाप्त नहीं हुई थे और पूर्व का यह इलाका इस वर्ग के लोगों का रंगमंच था)। सो उस रात देखते देखते लगभग पचास लाख की पालिसी बिक गईं और पहला प्रीमियम धडाधड वहीं वसूल हो गया।

दूसरे दिन बलिया में तहलका मच गया कि ऐसा धाकड़ बीमा वाला आया कि तवायफ के कोठे से पचास लाख का बिज़नेस समेट ले गया। यह समाचार जब अखबारों में कानपुर में कंपनी के उच्चाधिकारियों ने देखा तो बधाई के सिलसिले शुरू हो गए और और साथ में पाण्डेय जी ने मोटा इनाम हासिल किया।

कहिये कैसी रही !

बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

आत्मविश्वास से संपन्न की परीक्षा

@ मौसमी पाण्डेय 
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यू तो ज़िन्दगी में ऐसे बहुत से मोड़ आते हैं जब आपको लगता है की जीवन बहुत ही मुश्किल है लेकिन अगर इंसान की इच्छा शक्ति मज़बूत हो तो हर मुश्किल काम से पार पाया जा सकता है, हसते - खेलते |
हम संगीत की परीक्षा दे रहे थे लेकिन हमें और परीक्षार्थियों के साथ नहीं बल्कि एक कमरे में अकेले परीक्षा देना होता था क्योकि हम सीढियाँ नही चढ़ सकते थे व्हील चेयर से और पेपर हमेशा दूसरी मंजिल पर होता था|
हमें पेपर मिला और बहुत ही बढियां पेपर आया था ,हमने लिखना शुरू किया पूरी मस्ती के साथ........लेकिन थोड़ी देर बाद हमारे रूम के बगल में संगीत की ही प्रयोगात्मक परीक्षा चलने लगी जिसमे बच्चे रागों को गा कर परफोर्म कर रहे थे.......हमें बहुत ही दिक्कत हो रही थी क्योकि हमें जो लिखना था उसे notation कहते है जिसमे की गाने की स्वरलिपि लिखी जाती है..., अब उसे लिखने के लिए मन में गुनगुना पड़ता है लेकिन उन बच्चो की गाने की आवाज़,तबला,हर्मोनियेम की आवाज़ से हम खुद को एकाग्र नहीं कर पा रहे थे, अंतत हमने परीक्षक (examinier) को बुलाया और उनसे विनीति की.......... मैडम हमें बहुत दिक्कत हो रही है इसलिए आप कृपा कर के बाहर (वरांडा था) बैठने दें क्योकि इस तरह टाइम बहुत बीत जायेगा और पेपर अच्छा होने के बावजूद लिख नहीं पाएंगे ............उन्हों ने कहा सवाल ही नहीं उठता ,आपके चलते हमें कितनी परेशानी होती है, आपको जो जगह दी गई है आप येही बैठिये और एहसान मानिये की हमने आपको मौका दिया परीक्षा देने का......... बस इतनी सी बात कही उन्हों ने की मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर मैंने अपनी पेन,पेपर और कॉपी वहीँ छोड़ी और व्हील चेयर के सहारे बहार निकल आई और बोला== आपने मुझे मौका दिया है?? मै व्हील चेयर पर हूँ ये मेरी मजबूरी है वरना मै भी शांति से सारे बच्चो के साथ exam दे रही होती, ये आपकी ड्यूटी है एहसान नहीं,आप ये कैसे भूल गईं?? इस बात की मै शिकायत करुँगी और इस परेशानी में exam नहीं दूँगी.................!!!

बस फिर क्या था........उनकी हालत ख़राब.........अरे मौसमी तुम बात नहीं समझ रही हो ,अच्छा ठीक है थोड़ी देर वेट कर लो शांति हो जाएगी तब-तक मै तुम्हे दूसरा रूम देती हूँ उसी वक़्त उन्हों ने मेरा रूम बदल दिया जहाँ भरपूर शांति थी ..........मूड तो ऑफ हो चूका था लेकिन फिर मैंने खुद पर कंट्रोल किया , (वैसे उस वक़्त मेरे लिए एक ग्लास पानी रख दिया गया था) और लिखना शुरू किया ३ घंटे बाद मैडम ने चाय के साथ एक लड़की से ये कहलवाया की तुम आधे घंटे और टाइम ले सकती हो..........!इतने टेंशन के बावजूद मेरी परीक्षा बहुत अच्छी हुई |
 
मेरी ऐसी कहानियों का सिलसिला अभी थमा तो नहीं लेकिन अभी तक मैंने ज़िन्दगी से ये ही सीखा कि  इंसान की इच्छा शक्ति मज़बूत होनी चाहिए और ग़लत के आगे कभी झुकना नहीं चाहिए. क्योकि अगर मै उस वक़्त उनकी बात सुनकर चुप हो गई रहती तो शायद वो अभी तक अपनी ड्यूटी को एहसान ही समझ रही होती और हम पेपर अच्छा आने के बावजूद अच्छे अंक नहीं पाते ............!!!
@ मौसमी पाण्डेय 

जब वापस न आया मेरा जैमी

@ मृदुल तिवारी 
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एक कुत्ता था मेरे पास कभी.. उन दिनों मुझे राहुल द्रविड़ का खेल बहुत बुरा लगता था. तो उसके ही नाम पर मैंने अपने कुत्ते न नाम जैमी रख दिया, जो धीरे धीरे बदलकर जैम हो गया. एक छोटे से पिल्ले से कब वो एक बड़ा शानदार कुत्ता बन गया पता ही नहीं चला. देखने में वो खतरनाक लगता था. पर था बहुत शांत. मेरा उससे लगाव कुछ ज्यादा ही था, और उसका मुझसे. मेरे शब्दों के साथ-साथ वो मेरे इशारे तक समझता था. मैं उसके मुह में हाथ डालकर ब्रेड का टुकडा भी निकाल लूँ तो उसे कोई ऐतराज़ नहीं होता था. घर की छत पर मैंने उसका एक छोटा सा घर बनाया था जो की परदे से ढका रहता था. मुझे उसे कभी जंजीर बांधकर टहलाने ले जाने की जरूरत नहीं हुई. वो कहीं भी हो मेरी एक आवाज़ पर वो मेरे पीछे होता था. एक बार उसके पिछले पैर में कोई दिक्कत हुई. वो लंगड़ा कर चलने लगा था. अगले ही दिन मैंने एक पशुचिकित्सक को घर बुलाया. जैम को सारे इंजेक्शन उन्ही के
द्वारा लगाए जाते थे. रात का वक़्त था, उन्हें लगा शायद कोई अंदरूनी चोट है. उन्होंने जैम को उनकी क्लीनिक पर रात के लिए छोड़ देने को कहा. शायद वो उसका x-ray करना चाहते थे. जैम इस तरह कभी किसी अनजानी जगह रात भर नहीं रहा था. पर मैं फिर भी उसे क्लीनिक पर छोड़ आया.

रात के करीब २ बजे एक फ़ोन से मेरी आँख खुली. फ़ोन उसी क्लीनिक से था, पता चला की मेरा कुत्ता रातभर सबको परेशान करता रहा और अभी अभी जंजीर तुड़ाकर कहीं भाग गया. मैं और मेरी भतीजी उसी वक़्त से घर के बाहर खड़े जैम के वापस आने का इन्तजार करने लगे. सुबह हो गई पर जैम नहीं आया. क्लीनिक घर से ७-८ किलोमीटर की दूरी पे था. सबने यही कहा की जानवर अपने घर लौट ही आते है, परेशान न हो वो भी आ जायेगा. मैंने उसे अगले कई दिनों तक ढूँढा. पर कोई पता नहीं चला. फिर ये लगने लगा की शायद उसे किसी ने अपने घर में रख लिया है या उसके साथ कुछ बुरा हो गया है.

इस घटना को अब १ महीना हो चुका था. उसके बर्तन उसकी जंजीर अब भी मैंने उसके घर में संभाल के रख रक्खे थे. एक दिन घर में कोई नहीं था, मेन गेट भी खुला था. मैं अन्दर वाले कमरे में था की अचानक एक जानी पहचानी आवाज से मै चौक गया. मेरे बाहर आने से पहले ही जैम मुझपर कूद चुका था. वो बुरी तरह कीचड़ में सना हुआ था. और मेरे सफ़ेद कपड़ों को भी उसने लिपट लिपट कर उसी रंग का कर दिया. कीचड़ में सराबोर हम दोनों उस वक़्त शायद काफी गंदे नज़र आ रहे हों. पर जो आनंद हम दोनों उस वक़्त महसूस कर रहे थे उसको बता पाना मुश्किल है.
@ मृदुल तिवारी 

आइये यादों के आनंद में सराबोर हों..


प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में बहुत सी घटनाओं, बहुत से क्रिया-कलापों, बहुत से एहसासों, अनेक कार्यों, कई सारे अनुभवों से गुजरता है..इन सबका मिलाजुला असर देखने को भी मिलता है..कई बार मीठा सा, पसंद करने वाला और कई बार खट्टा सा, कुछ-कुछ निराश सा करने वाला...बहुत सी बातों को हम चाह कर भी भुला नहीं पाते..वे यादों के रूप में हमारे साथ सदा-सदा को रहतीं हैं.
 
कई बार ये यादें हमें हंसाली हैं, गुदगुदाती हैं तो कई बार रुलाती हैं, एक कसक सी जगाती हैं...हम सब आये दिन अपने दिल के हाथों वशीभूत होकर अपनों के बीच इन खट्टी-मीठी यादों को बांटते रहते हैं..
 
इस समूह का उद्देश्य भी यही है कि हम अपनी इन खट्टी-मीठी यादों को आपस में बाँट कर कभी आँखों में ख़ुशी की चमक भर दें तो कभी इन्हें साथ-साथ नम भी करें.... स्मृति वन में विचरण करते हुए कई बार हमें सुगन्धित पुष्प भी मिलेंगे तो किसी मोड़ पर काँटों की चुभन का एहसास भी होगा.....
 
कुछ भी हो साथ में स्मृति वन में टहलने का, विचरने का अपना ही आनंद है.....आइये हम सब साथ मिलकर इस आनन्द को उठायें...